Tuesday, July 15, 2008

कदमो की निशान

जब मेरी राख उड़ जाए तो उस रास्ते से गुज़र जाना,
मेरे पास तेरे कदमो की निशान तो रह जाएँगे,
कभी अपने आँसुओ में अपने चेहरे को देखा लेना,
तेरे चेहरे पर मेरे प्यार के ज़र्रे नज़र रह जाएँगे,
जब जब मैं घर की छत को देखूँगा,
वहाँ भी तेरे प्यार के ख्वाब रह जाएँगे,
समेटोगे जब भी तुम अपने दामन को,
तो उसमे थोड़े से यादो के फूल हमारे भी रह जाएँगे,
रही हो मेरी दुनिया को छोड़ के,
मगर फिर भी तुम्हारे दिल में अरमान रह जाएँगे,
जब कभी माँगॉगे तुम हमसे हमारी खुशिया,
हमारे फरिश्ते भी तुम्हे दे जाएँगे,
तू सजी बैठी है सुहाग के जोड़े में,मैं कफ़न ले के बैठा हूँ,
चार जन तुझे भी ले जाएँगे, चार जन मुझे भी ले जाएँगे,
तुझे सुसराल जाना है मुझे शमशान जाना है,
बस गम इतना ही है की हमारे सफ़र के साथ अधूरे रह जाएँगे

13 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

vha Vipinji, bhut badhiya likh rhe hai. badhai ho. likhate rhe.

Udan Tashtari said...

vaaha! sunder rachna.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचनाहै। बधाई।

Vinay said...

आपकी कविताएँ पसंद आयीं, बधाईयाँ!

seema gupta said...

तू सजी बैठी है सुहाग के जोड़े में,मैं कफ़न ले के बैठा हूँ,
चार जन तुझे भी ले जाएँगे, चार जन मुझे भी ले जाएँगे,
तुझे सुसराल जाना है मुझे शमशान जाना है,
बस गम इतना ही है की हमारे सफ़र के साथ अधूरे रह जाएँगे

"marvelleous"

" hr mehfil sje taire liye, mujhe to gum-e-tanha hee rehna hai,
taire hoton ke hansee ke liye hum sare gum pee jaynege"

समय said...

खूबसूरत खयाल की प्रस्तुति के लिए मेरी ढेर साााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााारी


बधाई!

अंगूठा छाप said...

खूबसूरत खयाल की प्रस्तुति के लिए मेरी ढेर साााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााााारी


बधाई!

अंगूठा छाप said...

आपका ब्लाग देखा न होता तो कमेंट कैसे करता?
विपिन भाई सोचो तो!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुन्दर रचना, लेकिन काफ़ी उदास भरी हे, आप खुश रहॊ ओर अच्छी अच्छी रचनाये लिखते रहो. धन्यवाद

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अच्छा है विपिन...लिखते रहिए.
आपके परिचय में उल्लेखित
उपलब्धियाँ काबिल-ए-गौर हैं,
कम उम्र में आपने बड़ा काम किया है.
सुझाव यह है कि सधे हुए, मंझे हुए
कलमकारों को खूब पढिए.....पढ़ते रहिये.
अपने लिखे को भी बार-बार पढिए.
संशोधन...परिमार्जन की आदत डालिए.
फिर देखिये....अपना ही कवि
नए-नए रंगों में पेश आएगा.
============================
सस्नेह शुभकामनाएँ
डा.चन्द्रकुमार जैन

डॉ .अनुराग said...

जब जब मैं घर की छत को देखूँगा,
वहाँ भी तेरे प्यार के ख्वाब रह जाएँगे,
समेटोगे जब भी तुम अपने दामन को,
तो उसमे थोड़े से यादो के फूल हमारे भी रह जाएँगे,
रही हो मेरी दुनिया को छोड़ के,
मगर फिर भी तुम्हारे दिल में अरमान रह जाएँगे,
जब कभी माँगॉगे तुम हमसे हमारी खुशिया,
हमारे फरिश्ते भी तुम्हे दे जाएँगे,

bahut khoob...

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

sundar rachna

Anonymous said...

बहुत बढ़िया रचना लिखी आपने , कुछ मुझे भी सिखाइये :)