Tuesday, August 19, 2008

नया जोश,नई उमंग


एक दिन समंदर के किनारे पे,

मैने देखा की लहरे किनारे से टकरा रही हैं,

और किनारा लहरों को फिर धकेल रहा है,

लहरें नये जोश,नई उमंग के साथ,

फिर किनारे से टकराती है,

मैने सोचा किनारा न हो तो,

इन लहरों का क्या होगा?

वो लहरें मर जाएँगी,

उनका जोश मर जाएगा,

उनकी उमंग मर जाएँगी,

क्योकि किनारे ही उन्हे प्रेरित करते है,

नये जोश,नई उमंग के साथ,

किनारों से फिर टकराने के लिए।


यह कविता माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान की कक्षा 11 की अनिवार्य पुस्तक जीवन कौशल मे 2006 से लगी हुई है

14 comments:

आलोक साहिल said...

सुंदर,अत्यन्त सुंदर बंधू.
आलोक सिंह "साहिल"

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर

ताऊ रामपुरिया said...

नये जोश,नई उमंग के साथ,
किनारों से फिर टकराने के लिए।


बहुत सुंदर ! शुभकामनाएं !

Unknown said...

बहुत अच्छा ।
बधाई ।

राज भाटिय़ा said...

नये जोश,नई उमंग के साथ,
किनारों से फिर टकराने के लिए।
बहुत ही सुन्दर भाव, नये जॊश ओर उमंग से ही तो सफ़लता भी मिलती हे.
धन्यवाद

अभिन्न said...

जीवन से भरी ये तेरी कविता
प्रेरित करे जीने के लिए
............................ लहरों और किनारों के माध्यम से जीवन से नवसंचार भरने का साहस ऐसी ही रचना से मिल सकता है ,राजस्थान सरकार को बधाई जिन्होंने इसे नव नागरिकों को प्रेरित करने के लिए पाठ्यक्रम में अनिवार्यत लगवाया .आप को भी अनेकों शुभकामनायें

अभिन्न said...

जीवन से भरी ये तेरी कविता
प्रेरित करे जीने के लिए
............................ लहरों और किनारों के माध्यम से जीवन से नवसंचार भरने का साहस ऐसी ही रचना से मिल सकता है ,राजस्थान सरकार को बधाई जिन्होंने इसे नव नागरिकों को प्रेरित करने के लिए पाठ्यक्रम में अनिवार्यत लगवाया .आप को भी अनेकों शुभकामनायें

seema gupta said...

मैने सोचा किनारा न हो तो,
इन लहरों का क्या होगा?
वो लहरें मर जाएँगी,
उनका जोश मर जाएगा,
उनकी उमंग मर जाएँगी,
" rightly said, keenara hee to jine ko prerit krta hai, keenara hee aage bdhne ke shakte prdan krta hai, bhut sunder abheevyktee"
Regards

Pawan Kumar said...

Ye kavita bahut motivative hai.School ke bacchon me naya josh sancharit karne me ye kavita bahut kaargar hai.

pallavi trivedi said...

bahut badhiya kavita...badhai.

anilpandey said...

ये किनारे ही हैं यार विपिन जो दूसरों को किनारे आना सिखाते हैं । पर कभी कभी ये किनारे बहुत बडा दुःख देते है । तब पता है दिल क्या कहता है और ह्रदय सोंचता क्या है ," की काश कहीं ये किनारे ना होते /पार कर जाता मैं इस क्षितिज को हंसते हंसते " ।

मीत said...

bahut shukriya itni umda rachna se parichay karane ka...
jari rahe

Anwar Qureshi said...

विपिन भाई बहुत अच्छा ख्याल है आप का ..अच्छा लिखा है आप ने शुक्रिया आप का ..

Smart Indian said...

बहुत खूब! शुभकामनाएं!