Friday, August 29, 2008

वो बचपन


वो बचपन के सपने,

वो कच्ची रस्में,

वो पक्के इरादे,

वो लड़ते-झगड़ते,

मिलते मिलाते,

निकल आए हैं,

बहुत दूर कहीं,

जहाँ सपने भी है,

रस्मे भी है,

इरादे भी है,

कुछ नही है तो बस,

वो बचपन नही है,

न जाने कहाँ चला गया?

वो बचपन.

12 comments:

रंजू भाटिया said...

कुछ नही है तो बस,

वो बचपन नही है,

न जाने कहाँ चला गया?

वो बचपन.

बहुत खूब

Udan Tashtari said...

बेहतरीन..
बहुत उम्दा...वाह!

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद सुंदर रचना ! धन्यवाद !

Anil Pusadkar said...

shaandar

नीरज गोस्वामी said...

बचपन के दिन भी क्या दिन थे, उड़ते फिरते तितली बन...
बहुत सुंदर रचना...
नीरज

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह वाह बहुत सुन्दर

राज भाटिय़ा said...

अति सुन्दर

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

कुछ नही है तो बस,

वो बचपन नही है,

न जाने कहाँ चला गया?

वो बचपन.

मीत said...

बहुत दूर कहीं,
जहाँ सपने भी है,
रस्मे भी है,
इरादे भी है,
कुछ नही है तो बस,
वो बचपन नही है,
न जाने कहाँ चला गया?
वो बचपन.
bahtreen likha hai bhai..
khoobsurat..

admin said...

सही कहा आपने बचपन कैसा भी हो, किसी का भी हो, रह-रह कर याद आता है।

Anonymous said...

कुछ नही है तो बस,

वो बचपन नही है,

न जाने कहाँ चला गया?

वो बचपन.
bahut khubsurat.

Smart Indian said...

बहुत सुंदर! वाह वाह!