सोचो ज़रा, कितने गंदे हैं वो लोग?
जो कभी हमाम में भी नंगे नहीं हुए,
बस्तियाँ जला कर देख रहे है,
ज़रा सा भी शर्मिन्दा नही हुए,
वो नफ़रत आज भी मौजूद है उन आँखो में,
जिनके अपने सफ़र में साथ नही हुए,
कागज़ी टुकड़ो के लिए बच्चो को मार देते है,
शायद उनके कभी, अपने बच्चे नही हुए,
जो बेचते है औरत के ज़िस्म को,
शायद वो पैदा औरत की कोख से नही हुए.
22 comments:
कागज़ी टुकड़ो के लिए बच्चो को मार देते है,
शायद उनके कभी, अपने बच्चे नही हुए,
जो बेचते है औरत के ज़िस्म को,
शायद वो पैदा औरत की कोख से नही हुए.
विचारणीय है यह लफ्ज़
वाह भई वाह, इस बार तो कमाल कर दिया!
वाकई बहुत बेहतरीन
बहुत उम्दा रचना. बधाई.
बहुत सुन्दर और बहुत कुछ कहती कविता लिखी है आपने।
घुघूती बासूती
वाह विपिन जी, आपकी मेहनत रंग ला रही है. आपकी पुस्तक अभी नहीं मिली.
वो नफ़रत आज भी मौजूद है उन आँखो में,
जिनके अपने सफ़र में साथ नही हुए,
Vipnji, bhut sundar paktiya. kya baat hai bhut badhiya likh rhe hai. jari rhe.
कमाल का लिखा है
बहुत सच्चा - बहुत अच्छा - लिखते रहिये.
वाह विपिन जी,बहुत खुब लिखा हे आप ने, धन्यवाद
बहुत अच्छा
Jai Sai Ram
जबरदस्त लिखा है !
शुभकामनाए !
जो बेचते है औरत के ज़िस्म को,
शायद वो पैदा औरत की कोख से नही हुए.
" commendable, really will touch every one heart"
vipin ji
aapki comment ke jariye aapke blog par aana hua .apne khayalato ko aapne bahut hi khubsurati ke sath pash kiya hai.
जो बेचते है औरत के ज़िस्म को,
शायद वो पैदा औरत की कोख से नही हुए.
bahut umda ........
बहुत उम्दा विचारणीय रचना| बधाई|
भावुक कविता....क्रांतिकारी विचार......ये जोश.....
बहुत शिद्दत से लिखी है कविता
आपके सच्चे भावोँ की
कद्र करते हुए, शुभेच्छा -
-लावण्या
kash in sab savalon ko jo aapne kavita ke madhyam se uthaye hai...inka uchit zawab mil jaye..aur in vicharon ko un bhatke hue logon tak pahunchaya jaye...jo gande to hai hi....aurat aur bachho ki jinki nazar me koi value nahi hai...
agar insaan ko insaan hone ka ehsaas ho jaye,
to bhagvaan unke kitna
paas ho jaye.
जो बेचते है औरत के ज़िस्म को,
शायद वो पैदा औरत की कोख से नही हुए
bahut hi umda...
जो बेचते है औरत के ज़िस्म को,
शायद वो पैदा औरत की कोख से नही हुए
सही कहा विपिन....
इन दिनों तो लड़कियों की भ्रूण हत्या के बारे में सुनकर भी यही एहसास होता है कि क्या वे भी औरत की कोख से पैदा नहीं हुए या हुई हैं? खैर....
"kaagazee tukade" aajhi padhi. antarmukh bana diya. jo laashonke kafan bechte hain, wohi logto aurat ki kokhka karobaarbhi karte hain!!Ye alfaaz mere na hon lekin inse poori tarah sehmat hun mai!
"Dekhati hamaareehi aankhen,
Hamaaraahi tamaashaa,
Banati hain khudhee tamaashaayee,
Hamarehee samne!!
Band honepe hain aankhen,
Phirbhee khulee nahi hamaaree!!
jo bechte hain aurat ki jism ko................. kya baat hai vipin ji.badhai aapko kadua sach ki
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