Wednesday, September 17, 2008

सहरा

कोशिशे बहुत की गुलशन की,
फ़िर भी ज़िन्दगी सहरा है
टूट कर चाहा मैंने उसे,
उससे रिश्ता मिरा गहरा है,
कल तक जो देते थे नसीहत,
आज उन बुजुर्गो पे पहरा है,
गुजरेगी वो भी इसी राह से,
दिल उसे देखने ही तो ठहरा है,

14 comments:

कुन्नू सिंह said...

खूब अच्छा लीखा है। मजा आ गया।

डॉ .अनुराग said...

कल तक जो देते थे नसीहत,
आज उन बुजुर्गो पे पहरा है,

theek kaha...

रंजन (Ranjan) said...

क्या कहें अब इसके सिवा..
कि
ये चन्द लाईने...
लाजबाब है..
दोस्त..

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर,कल तक जो देते थे नसीहत....
धन्यवाद

Anonymous said...

bahut khub.........

मीत said...

चंद सुंदर पंक्तियाँ...
सुंदर एहसास के साथ..

वर्षा said...

सुंदर।

admin said...

कोशिशे बहुत की गुलशन की,
फ़िर भी ज़िन्दगी सहरा है
टूट कर चाहा मैंने उसे,
उससे रिश्ता मिरा गहरा है,

बहुत प्‍यारी पंक्तियॉं हैं, बधाई।

"अर्श" said...

कल तक जो देते थे नसीहत,
आज उन बुजुर्गो पे पहरा है,


shandar bat kahi aapne ...saral bhav ke santh.....umdda rachana hai........

regards

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत ख़ूब!
वो कभी तो इधर से गुज़रेंगे
क्यों न हर वक़्त इन्तज़ार करूं?

seema gupta said...

"very beautiful thoughts "

Regards

बाल भवन जबलपुर said...

vah sir jee chhaa gae bhaa gae

parul said...

bahut sundar

parul said...

bahut sundar