Tuesday, February 24, 2009

वही जंग ज़िन्दगी में हरबार है

वही सफर और वही किरदार है

खुबसूरत तस्वीर और रंग बेहतरीन है

एक रोटी और ढेरो हकदार है

मेरे मुल्क में सब गद्दार

यहाँ सिर्फ गरीबी वफादार है

जो लड़ा सच से, सच के लिए

वो गाँधी भी आज शर्मसार है

राजनीती अच्छा खेल है

लेकिन यही खंडहर दीवार है

4 comments:

समय चक्र said...

जो लड़ा सच से, सच के लिए
वो गाँधी भी आज शर्मसार है
राजनीती अच्छा खेल है
लेकिन यही खंडहर दीवार है
विपिन जी बहुत बढ़िया रचना के लिए बधाई

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुण्दर कविता.
धन्यवाद

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर रचना ।