Friday, February 3, 2017

सफर

वो उस रात का सफर,

मिलकर बिछुड़ने का सफर,

दोनों खामोश थे मगर,

दोनों की ख़ामोशी का सफर,

आज भी है सांसो का सफर,

उस रात की यादों का सफर,

उसके चेहरे में थी एक मासूमियत,

याद है उसकी मासूमियत का सफर,

वो आज फिर मिली उसी सफर में,

उसी मासूमियत के साथ,

तब वो अकेली थी सफर में,

आज है किसी हमसफ़र के साथ।

4 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 11 फरवरी 2017 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर । ब्लौग फौलोवर गेजेट भी जोड़े ।

Unknown said...

जिसे हम अपना हमसफ़र बनाना चहाते हैं। उसे किसी और के साथ सफ़र करते हुए देख कर बहुत दुख होता हैं।
शायद जीवन का इससे बड़ा कोई दुख हो ही नहीं सकता।
सुन्दर शब्द रचना
http://savanxxx.blogspot.in

अनीता सैनी said...

हृदय स्पर्शी सृजन।