सुबह 5 बजकर 40 मिनिट...मेरे फ़ोन की घंटी लगातार बजी जा रही थी। गहरी नींद से जागकर फ़ोन देखा तो unknown न. था। कुछ सेकेंड सोचने के बाद मैंने फ़ोन उठा लिया..."आप श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा अजमेर के मंत्री विपिन जी बोल रहे है" सामने से आवाज़ आई। मैंने कहा "हाँ विपिन जैन बोल रहा हूँ, बोलिये आप कौन?" "मैं श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा भुसावल (महाराष्ट्र) का मंत्री रवि निमानी बोल रहा हूँ, हमारे भुसावल के एक परिवार का आपके शहर के पास थांवला में सुबह 4 बजे के आसपास एक्सीडेंट हो गया है, परिवार में 13 जने है और टेम्पू ट्रेवलर से यात्रा कर रहे थे। हमें पुलिसकर्मियों ने सूचना दी है कि ड्राइवर सहित सभी 14 जनों को अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में ले जाया गया है। कृपया आप वहाँ जाकर उन लोगों की मदद करिये, हमारा किसी से भी संपर्क नही हो पा रहा।" निमानी जी की पूरी बात सुनने के बाद मैंने तुरंत अपने समाज के और साथियों को फ़ोन पर सूचना दी और निवेदन किया कि हमको अस्पताल पहुंच कर सभी के इलाज़ में मदद करनी चाहिए। कुछ लोगों को फ़ोन करने के बाद मैं अस्पताल के लिये निकला, मेरे पहुंचने के साथ ही तेरापंथ युवक परिषद के पूर्व अध्यक्ष अनिल जी छाजेड़, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष सुमति जी छाजेड़ और राजेश जी छाजेड़ भी पहुंचे। JLN आपातकालीन केंद्र(केजुअल्टी सेंटर) पर अफरा तफरी को देखकर हम चारों को समझने में ही कुछ मिनिट लग गए की हुआ क्या? केजुअल्टी सेंटर के डॉ से पता चला सभी 13 जने चोटिल हुए थे, एक कि मृत्यु हो चुकी है और उनका नाम सुजीत कोठारी है। डॉ ने मुझसे पूछा आप कौन? मैंने जवाब दिया हम एक ही गुरु के अनुयायी है, पता चलने पर मदद के लिए आये है। डॉ ने बताया कि सुजीत जी कोठारी की बड़ी बेटी साक्षी का जबड़ा पूरा टूट चुका है सांस नही ले पा रही और वह सीरियस है, छोटी बेटी सेजल के हाथ में फ्रेक्चर (humerus bone) है, पत्नी और बेटे के कुछ ही चोट लगी है, सुजीत जी कोठारी की बहन का परिवार भी साथ ही यात्रा कर रहा था, सुजीत जी के भांजे शुभम के पैर में घुटने के ऊपर फ्रेक्चर(femur bone) था, शुभम की पत्नी सारिका के फेफड़ो में गहरी चोट से सीरीयस है, सुजीत जी के बड़े भाई की पत्नी मंजू और बेटा भी साथ था। मंजू के हाथ में और thighbone की बॉल में फ्रेक्चर है। बाकी सभी सुजीत जी की पत्नी, सुजीत जी की बहन, बच्चे डाली, वैभव और एक छोटी बच्ची को मामूली चोट ही आई थी। हम सभी समाज के लोगों ने मिलकर सभी घायलों के सुचारू रूप से इलाज ले लिए सभी हो सकने वाले प्रयास किये। सारिका सीरियस होने के कारण JLN अस्पताल के ICU में ही थी, कुछ ही समय बीता था शायद 1घंटा ही....सारिका के वेंटिलेटर लगा दिया गया था। उधर साक्षी की हालत भी बहुत खराब थी...JLN के न्यूरो सर्जन ने देखा और कहा जबड़े का इलाज तो बाद में भी हो जाएगा पहले न्यूरो की परेशानी न हो इस लिए इसे न्यूरो के वार्ड में शिफ्ट कर दिया.....7 जनो को इलाज कराकर हम तेरापंथ भवन ले आये। ड्राइवर को ज्यादा चोट नही लगी थी वो अस्पताल में ही भर्ती था। हमने 3 जने मंजू, शुभम और सेजल का एक प्राइवेट ऑर्थोपेडिक अस्पताल में ऑपरेशन करवाने के लिए शिफ्ट कर दिया। अब हमें सारिका और साक्षी पर ही ध्यान केंद्रित करना था। सारिका दिन भर संघर्ष करती रही...शाम 6 बजे तक सुजीत जी कोठारी के भाई निर्मल जी कोठारी आ गए, सुजीत जी का पोस्टमार्टम करवाकर भुसावल ले जाना था। 2 घंटे बाद भुसावल तेरापंथ सभा के मंत्री रवि जी निमानी भी अपने साथियों के साथ अजमेर आ गए। साक्षी को दिनभर JLN ने रखने के बाद कोई सुधार न होने पर रात 11:30 मित्तल अस्पताल में ले आये, रात को साक्षी के भी वेंटिलेटर लगा दिया गया। अगले दिन सुबह...साक्षी में स्थिरता आ गई। डॉ ने बताया कि एक दो दिन के बाद आप इसे इलाज के लिए कही भी ले जा सकते है।
उधर सारिका दिन के बाद रात का संघर्ष कर अगले दिन की दहलीज पर आ जाती है। आज (यानी एक्सीडेंट का दूसरा दिन) मुझे पता चला कि शुभम और सारिका की शादी 11 महीने पहले ही हुई है। उसी क्षण मन अस्थिर हो गया, सारिका ने तो पूरी दुनिया भी नही देखी होगी, वैवाहिक जीवन का सुख दुख भी नही देखा। ईश्वर किसकी परीक्षा ले रहा था। दिनभर में मैं कई बार ICU में गया, उसमे जीने की तीव्र इच्छा शक्ति थी, शायद इसी लिए वो संघर्ष कर पा रही थी। निमानी जी, मैंने और कृणाल (सुजीत जी का मौसी का बेटा) ने निर्णय कर लिया था कि साक्षी को वेंटिलेटर वाली एम्बुलेंस में मुम्बई शिफ्ट करते है और सारिका को वेंटिलेटर वाली एम्बुलेंस में जयपुर इटरनल अस्पताल में शिफ्ट करते है। साक्षी को मित्तल से मुम्बई के लिए तीसरे दिन सुबह 11 बजे रवाना कर दिया। निमानी जी ने तो air ambulance से सारिका को मुम्बई ले जाने की भी पूरी संभावनाए तलाशी लेकिन परिस्थितिया हक़ में नही थी। अब मैं और निमानी जी सारिका को दूसरी एम्बुलेंस में जयपुर ले जाने की तैयारी करने लगे, इतने में एम्बुलेंस के अटेन्डेन्ट ने सारिका को ICU में जाकर देखा और हमे बताया कि ऑक्सीजन लेवल इतना कम है कि उसे बेड से हिला भी नही सकते। सारे संसाधन होने के बावजूद भी निमानी जी, मैं और कृणाल असहाय थे, हम कुछ नहीं कर सकते थे, सिर्फ इसी अस्पताल में उसके बेहतर होने की उम्मीद और प्रार्थना कर सकते थे। दोपहर का 1 बजा था उस वक़्त....इस जंग में मौत जीत गई सारिका हार गई...वो ढाई दिन भी सिर्फ और सिर्फ खुद की इच्छा शक्ति की वजह से जीवित रह पाई वरना कोई और होता तो पहले ही दिन शायद जंग हार जाता। खैर..उसका भी पोस्टमार्टम करा कर एम्बुलेंस में भुसावल ले गए। निमानी जी जाते जाते मुझे कह गए तीन दिनों में खोया बहुत मगर एक जीवन भर का दोस्त पाया। आज लगभग 8 दिन बाद पता चला कि साक्षी को भी वेंटिलेटर पर ही रखा गया था। उसका जबड़े का सफल ऑपरेशन भी हो गया। वो तीन दिन आज याद आ गए, जो कई सारे सवाल छोड़ गए थे।
उधर सारिका दिन के बाद रात का संघर्ष कर अगले दिन की दहलीज पर आ जाती है। आज (यानी एक्सीडेंट का दूसरा दिन) मुझे पता चला कि शुभम और सारिका की शादी 11 महीने पहले ही हुई है। उसी क्षण मन अस्थिर हो गया, सारिका ने तो पूरी दुनिया भी नही देखी होगी, वैवाहिक जीवन का सुख दुख भी नही देखा। ईश्वर किसकी परीक्षा ले रहा था। दिनभर में मैं कई बार ICU में गया, उसमे जीने की तीव्र इच्छा शक्ति थी, शायद इसी लिए वो संघर्ष कर पा रही थी। निमानी जी, मैंने और कृणाल (सुजीत जी का मौसी का बेटा) ने निर्णय कर लिया था कि साक्षी को वेंटिलेटर वाली एम्बुलेंस में मुम्बई शिफ्ट करते है और सारिका को वेंटिलेटर वाली एम्बुलेंस में जयपुर इटरनल अस्पताल में शिफ्ट करते है। साक्षी को मित्तल से मुम्बई के लिए तीसरे दिन सुबह 11 बजे रवाना कर दिया। निमानी जी ने तो air ambulance से सारिका को मुम्बई ले जाने की भी पूरी संभावनाए तलाशी लेकिन परिस्थितिया हक़ में नही थी। अब मैं और निमानी जी सारिका को दूसरी एम्बुलेंस में जयपुर ले जाने की तैयारी करने लगे, इतने में एम्बुलेंस के अटेन्डेन्ट ने सारिका को ICU में जाकर देखा और हमे बताया कि ऑक्सीजन लेवल इतना कम है कि उसे बेड से हिला भी नही सकते। सारे संसाधन होने के बावजूद भी निमानी जी, मैं और कृणाल असहाय थे, हम कुछ नहीं कर सकते थे, सिर्फ इसी अस्पताल में उसके बेहतर होने की उम्मीद और प्रार्थना कर सकते थे। दोपहर का 1 बजा था उस वक़्त....इस जंग में मौत जीत गई सारिका हार गई...वो ढाई दिन भी सिर्फ और सिर्फ खुद की इच्छा शक्ति की वजह से जीवित रह पाई वरना कोई और होता तो पहले ही दिन शायद जंग हार जाता। खैर..उसका भी पोस्टमार्टम करा कर एम्बुलेंस में भुसावल ले गए। निमानी जी जाते जाते मुझे कह गए तीन दिनों में खोया बहुत मगर एक जीवन भर का दोस्त पाया। आज लगभग 8 दिन बाद पता चला कि साक्षी को भी वेंटिलेटर पर ही रखा गया था। उसका जबड़े का सफल ऑपरेशन भी हो गया। वो तीन दिन आज याद आ गए, जो कई सारे सवाल छोड़ गए थे।
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