Saturday, June 28, 2008

पुरानी बातें

वो इतनी पुरानी बातें याद दिलाता रहा,
मैं सुनता रहा आईने में उसको देखता रहा,
और अपनी आखों में खुशी और गम के,
थोड़े बहुत शामियाने सजाता रहा,
वो बरसों पुरानी यादें,
मेरे जेहन पर खटखटाता रहा,
और मैं अपनी आँख के हर कतरे को,
एक समंदर बनाता रहा,
वक़्त के शजर से वो लम्हे तोड़ता रहा,
और यादों की मरहम से,
वो मेरे हर जख़्म को भरता रहा,
बस एसा ही था मेरे अंदर का इंसान

4 comments:

कुश said...

बढ़िया लिख रहे हो विपिन..

आशीष कुमार 'अंशु' said...

सुंदर कविता

Advocate Rashmi saurana said...

sundar rachana ke liye badhai. likhate rhe.

Udan Tashtari said...

स्वागत है हिन्दी ब्लॉगजगत में. नियमित लिखिये. शुभकामनाऐं.