Friday, July 4, 2008

सांसो के खंज़र

रात भर मेरा जिस्म था,
जिस पर तेरी सांसो के खंज़र चले,
दहकते, सुलगते होंठ थे तेरे,
होंठो से न जाने कितने शोले चले,
अंग-अंग में अजीब सी खुशबू थी,
जैसे खुश्बुओं के कई कारवां चले,
इस कदर समा रहे थे एक दूसरे में,
दरिया कोई समंदर में मिलने चले,
तूफ़ानी रात में एक गर्माहट थी तुम्हारी,
उस रात मोहब्बतो के कई दौर चले ]

2 comments:

jasvir saurana said...

bhut khub. likhate rhe.

seema gupta said...

तूफ़ानी रात में एक गर्माहट थी तुम्हारी,
उस रात मोहब्बतो के कई दौर चले ]
"marvellous"
Regards