Saturday, July 5, 2008

आँसू

हर एक आँसू में ग़म को रुलाता क्यूँ है?
अगर ख़फा है तू किसी से तो बताता क्यूँ है?
सपने तो सबके टूटे हैं,
फिर ज़माने को सताता क्यूँ है?
वक़्त सबको बदल देता है,
फिर वक़्त से ज़ेहाद-ए-अंदाज़ क्यूँ है?
जिन्हें तू छोड़ आया है पीछे,
आवाज़ देकर उन्हें बुलाता क्यूँ है?
यकीं है तुझे न होंगे ये सपने सच,
फिर इन सपनों को सजाता क्यूँ है?

2 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

vipinji bhut sundar likh rhe hai. jari rhe.

योगेन्द्र मौदगिल said...

achha prayas hai. nirantarta banae rakhiye.