हर एक आँसू में ग़म को रुलाता क्यूँ है?
अगर ख़फा है तू किसी से तो बताता क्यूँ है?
सपने तो सबके टूटे हैं,
फिर ज़माने को सताता क्यूँ है?
वक़्त सबको बदल देता है,
फिर वक़्त से ज़ेहाद-ए-अंदाज़ क्यूँ है?
जिन्हें तू छोड़ आया है पीछे,
आवाज़ देकर उन्हें बुलाता क्यूँ है?
यकीं है तुझे न होंगे ये सपने सच,
फिर इन सपनों को सजाता क्यूँ है?
2 comments:
vipinji bhut sundar likh rhe hai. jari rhe.
achha prayas hai. nirantarta banae rakhiye.
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