Tuesday, August 26, 2008

गुजरात दंगे


जब खंज़र चले ,

एक दूजे पर ,

तुम पर मुझ पर ,

हर मज़हब पर ,

जब खुनी मंज़र हो ,

हर मंज़र पर,

तो दिल रोता है ,

और सोचता है ,

की क्या वो,

भगवान और खुदा ,

खंज़र चलवा सकता है,

अपने बन्दों से अपने बन्दों पर .

12 comments:

seema gupta said...

भगवान और खुदा
खंज़र चलवा सकता है,
अपने बन्दों से अपने बन्दों पर .

" ah, very painful, well said, thought to be given consederation"

Regards

नीरज गोस्वामी said...

की क्या वो,
भगवान और खुदा ,
खंज़र चलवा सकता है,
अपने बन्दों से अपने बन्दों पर
Ek shashwat prashn...bahut achchhi rachna...badhai
neeraj

Anonymous said...

की क्या वो,
भगवान और खुदा ,
खंज़र चलवा सकता है,
अपने बन्दों से अपने बन्दों पर .
bilkul sahi parashn uthaya hai....

ताऊ रामपुरिया said...

सोचने पर विवश करती एक
उम्दा रचना ! शुभकामनाएं !

अवाम said...
This comment has been removed by the author.
अवाम said...

नहीं विपिन जी भगवान कभी भी किसी बन्दे से किसी बन्दे पर खंजर चलाने के लिए नहीं कहता है. ये तो आज का इन्सान है जो जानवरों से बदतर आदतों को अपने में समेटे हुए है और इस तरह की हरकत करता है जो दूसरों का चैन और सुकून छीनते है.

Tarun said...

विपिन बहुत खूब, इसी सोच पर मैने भी एक कविता लिखी थी, कल पोस्ट करूँगा पढ़ियेगा जरूर

भगवान और खुदा
खंज़र चलवा सकता है,
अपने बन्दों से अपने बन्दों पर

मंजर से लेकर खंजर तक सबकुछ चुभता सा सच,

डॉ .अनुराग said...

prshaant ji ne theek kaha hai ...vipin....

Udan Tashtari said...

संवेदनशील रचना !

समय चक्र said...

rachana bhavuk hai.

राज भाटिय़ा said...

भगवान और खुदा
खंज़र चलवा सकता है,
अपने बन्दों से अपने बन्दों पर .?
बहुत ही भावुक सवाल लेकिन अकल के अंधो के लिये .
धन्यवाद इस अच्छी रचना के लिये

PREETI BARTHWAL said...

संवेदनशील रचना है।