बेसबब बिखरती ज़िंदगी,
और बदलते लिबास ज़िंदगी,
कोरे है काग़ज़ जिसके,
ऐसी एक किताब ज़िंदगी,
रिश्तो पे जमी बर्फ,
और फटी लिहाफ़* ज़िंदगी,
कांटो की तरह चुभे है,
मंज़र के निशान ज़िंदगी,
बद्तर हालत मगर हम बेबाक,
यही है मिज़ाज़ ज़िंदगी,
बेहतर है,उम्दा है उनसे,
लहज़े में मिठास ज़िंदगी,
घर से बिखरने की पीड़ा,
एक कड़वा अहसास ज़िंदगी,
अक्सर टूटता हूँ जुदा होकर,
जैसै टूटे तारों का सितार ज़िंदगी।
*लिहाफ़= रज़ाई
8 comments:
रिश्तो पे जमी बर्फ,
और फटी लिहाफ़* ज़िंदगी,
bahot khub likha hai aapne...
सच है जिन्दगी कोरे कागज़ की एक किताब है. उस पर चाहें तो 'लहजे में मिठास' लिख दें या कड़वा अहसास.
क्या बात है, बहुत सुंदर भाव,
आप का आभार
बहुत सुंदर लिखा है....बधाई।
कोरे है काग़ज़ जिसके,
ऐसी एक किताब ज़िंदगी,
बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें...
नीरज
jindagi par likhi aapki rachna bahut pand aayi..bahut-2 badhai...
अक्सर टूटता हूँ जुदा होकर,
जैसै टूटे तारों का सितार ज़िंदगी।
बढ़िया गज़ल है विपिन। वास्तव में जिंदगी कई बार बटोर बटोर के जीनी पड़ती है ना।
"Besabab bikhartee zindagee...'...shayad sabhee ke mooh se alfaaz chheen ke kah daale...
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