Monday, June 30, 2008

हमसफर

कितनी खामोश है?
कितनी तन्हा है?
कितनी अकेली है?
अंधेरे में मज़बूर भी है,
हर जगह मेरे साथ भी है,
ज़िन्दगी के हर किनारे से,
वो मेरी हमसफर भी है,
मगर फिर भी वो,
कितनी खामोश है?
कितनी तन्हा है?
कितनी अकेली है?
मेरी परछाई]

3 comments:

कुश said...

बहुत सुंदर.. यूही लिखते रहे

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया..

seema gupta said...

कितनी खामोश है?
कितनी तन्हा है?
कितनी अकेली है?
मेरी परछाई]

" hum akele khan hain,
sath chultee hai prchaee,
thumahree yadon ke mehfil se,
sjtee hai bus maire tanhaee"

Regards