Monday, June 30, 2008

सफ़र

वो उस रात का सफ़र,
मिलकर बिछुड़ने का सफ़र,
दोनों खामोश थे मगर,
दोनों की खामोशी का सफ़र,
आज भी है साँसों का सफ़र,
उस रात की यादों का सफ़र,
उसके चेहरे में थी एक मासूमियत,
याद है उसकी मासूमियत का सफ़र,
वो आज फिर मिली उसी सफ़र में,
उसी मासूमियत के साथ,
तब वो अकेली थी सफ़र में,
आज है किसी हमसफ़र के साथ ]

3 comments:

रंजू भाटिया said...

तब वो अकेली थी सफ़र में,
आज है किसी हमसफ़र के साथ ]

सही लिखा यही जिंदगी है

shama said...

Hamsafar hokebhi kayi baar ham akelehi hote hain!!
Apna har safar tanhaa hee hota hai,yakeen maniye!
Shama

seema gupta said...

दोनों खामोश थे मगर,
दोनों की खामोशी का सफ़र,
आज भी है साँसों का सफ़र,
उस रात की यादों का सफ़र,

" uttha hai jub dil mey,
taire bechanee ka safar,
dehka jata hai fir mujhe,
tujhe bichudne ka vo safar..."